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अहमद हमदानी

1927 - 2015 | कराची, पाकिस्तान

शायर व आलोचक, इकबाल के चिन्तन और उनके फ़न पर अपनी आलोचनात्मक किताब के लिए प्रसिद्ध

शायर व आलोचक, इकबाल के चिन्तन और उनके फ़न पर अपनी आलोचनात्मक किताब के लिए प्रसिद्ध

अहमद हमदानी

ग़ज़ल 16

अशआर 7

तू मयस्सर था तो दिल में थे हज़ारों अरमाँ

तू नहीं है तो हर इक सम्त अजब रंग-ए-मलाल

वो मेरी राह में काँटे बिछाए मैं लेकिन

उसी को प्यार करूँ उस पे ए'तिबार करूँ

क्यूँ हमारे साँस भी होते हैं लोगों पर गिराँ

हम भी तो इक उम्र ले कर इस जहाँ में आए थे

अजीब वहशतें हिस्से में अपने आई हैं

कि तेरे घर भी पहुँच कर सकूँ पाएँ हम

जाने आज ये किस का ख़याल आया है

ख़ुशी का रंग लिए हर मलाल आया है

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शायर अपना कलाम पढ़ते हुए
ये वफ़ाएँ सारी धोके फिर ये धोके भी कहाँ

अहमद हमदानी

चाँद ओझल हो गया हर इक सितारा बुझ गया

अहमद हमदानी

मुँह अँधेरे घर से निकले फिर थे हंगामे बहुत

अहमद हमदानी

ये वफ़ाएँ सारी धोके फिर ये धोके भी कहाँ

अहमद हमदानी

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