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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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अखिलेश तिवारी

1966 | जयपुर, भारत

अखिलेश तिवारी

ग़ज़ल 24

अशआर 13

सुब्ह-सवेरा दफ़्तर बीवी बच्चे महफ़िल नींदें रात

यार किसी को मुश्किल भी होती है इस आसानी पर

हँसना रोना पाना खोना मरना जीना पानी पर

पढ़िए तो क्या क्या लिक्खा है दरिया की पेशानी पर

अक़्ल वालों में है गुज़र मेरा

मेरी दीवानगी सँभाल मुझे

हर-दम बदन की क़ैद का रोना फ़ुज़ूल है

मौसम सदाएँ दे तो बिखर जाना चाहिए

वह शक्ल वह शनाख़्त वह पैकर की आरज़ू

पत्थर की हो के रह गई पत्थर की आरज़ू

हिंदी ग़ज़ल 2

 

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