अख़्तर होशियारपुरी
ग़ज़ल 52
अशआर 47
किसे ख़बर कि गुहर कैसे हाथ आते हैं
समुंदरों से भी गहरी है ख़ामुशी मेरी
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
ज़माना अपनी उर्यानी पे ख़ूँ रोएगा कब तक
हमें देखो कि अपने आप को ओढ़े हुए हैं
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
देखा है ये परछाईं की दुनिया में कि अक्सर
अपने क़द-ओ-क़ामत से भी कुछ लोग बड़े हैं
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
मैं अब भी रात गए उस की गूँज सुनता हूँ
वो हर्फ़ कम था बहुत कम मगर सदा था बहुत
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
ये क्या कि मुझ को छुपाया है मेरी नज़रों से
कभी तो मुझ को मिरे सामने भी लाए वो
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए