Font by Mehr Nastaliq Web

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

रद करें डाउनलोड शेर
Akhtar Orenvi's Photo'

अख़्तर ओरेनवी

1911 - 1977 | मुंगेर, भारत

प्रसिद्ध आलोचक, शोधकर्ता, कथाकार और शायर,अपनी रोमांटिक नज़्मों के लिए भी जाने गए।

प्रसिद्ध आलोचक, शोधकर्ता, कथाकार और शायर,अपनी रोमांटिक नज़्मों के लिए भी जाने गए।

अख़्तर ओरेनवी की कहानियाँ

किवाड़ की ओट से

यह ठठेरों के परिवार में ब्याह कर आई एक ऐसी औरत की कहानी है जिसने सारी उम्र किवाड़ की ओट में बैठकर घर से फ़रार अपने पति का इंतज़ार करने में बिता दी। वह जब ब्याह कर आई थी तो कुछ दिनों बाद ही उसका पति उसे छोड़कर कलकत्ता चला गया था, क्योंकि वह दूसरे ठठेरों की तरह नहीं बनना चाहता था। शुरू-शुरू में तो वह उसे कभी-कभी पत्र लिख देता था। फिर धीरे-धीरे पत्राचार का यह सिलसिला बंद हो गया। इस बीच उसकी पत्नी को एक बेटी भी हुई, तब भी पति वापस नहीं आया। सालों उसकी कोई ख़बर न मिली। पत्नी ने बेटी की शादी कर दी। बेटी की भी बेटी हो गई और अब जबकि उसकी शादी की तैयारियाँ हो रही हैं, पति का आसाम से पत्र आता है जिसमें लिखा है कि वह वापस आ रहा है। वह निर्धारित तिथि भी रोज़ की तरह गुज़र गई और पति नहीं आया।

सीमेंट

इस कहानी में गर्भवती स्त्री में हारमोन्ज़ परिवर्तन के कारण पैदा होने वाली विभिन्न मानसिक उलझनों और मनोवैज्ञानिक तबदीलीयों को बयान किया गया है। राशिदा बचपन से ही एक सुघड़ और नफ़ासत पसंद लड़की थी। शादी के बाद शौहर की माली कमज़ोरी के कारण वो कई तरह की मानसिक कष्ट में मुब्तिला रहती है। यहाँ तक कि इसी वजह से वो अपनी साज सज्जा के शौक़ को भी पूरा नहीं कर पाती और वो हाशिम से विमुख हो जाती है। गर्भ के दौरान वो एक दिन तीव्र इच्छा के प्रभाव में सीमेंट खा लेती है लेकिन बाद में उसे डर होता है और मायके जाने की ज़िद करती है। पेट में हलचल के सबब स्टेशन पर अचानक उसे हाशिम से बेपनाह लगाव पैदा हो जाता है और वो मामता के जज़्बे से मामूर हो जाती है। ट्रेन चलने के वक़्त उसे महसूस होता है कि उसके आँसूओं के घेरे में एक नन्हा सा फ़रिश्ता दरीचा से बाहर हाशिम की तरफ़ अपने हाथ फैला रहा है।

कलियाँ और काँटे

कहानी तपेदिक़ के मरीज़ों के लिए विशेष सेनिटोरियम और उसके कर्मचारियों के इर्द-गिर्द घूमती है। दिक़ के मरीज़ और उनकी तीमारदार नर्स, दोनों को यह बात अच्छी तरह मालूम है कि मरीज़ों की ज़िंदगी का सूरज किसी भी पल डूब सकता है। आशा-निराशा के इस कश्मकश के बावजूद दोनों एक दूसरे से यौन सम्बंध बनाते हैं और एक आम प्रेमी-प्रेमिका की तरह रूठने मनाने का सिलसिला भी जारी रहता है। सारी नर्सें किसी न किसी मरीज़ से भावनात्मक और यौन सम्बंध से जुड़े होते हैं और मरीज़ के स्वस्थ होने या मर जाने के बाद उनकी वफ़ादारियाँ भी बदलती रहती हैं लेकिन उनके दिल के किसी कोने में ये हसरत भी रहती है कि काश कोई मरीज़ उनको हमेशा के लिए अपना ले। इसीलिए जब अनवर विदा होने लगता है तो कैथरिन रोते हुए कहती है, अनवर बाबू, आपने हम नर्सों को औरत न समझा, बस एक गुड़िया... एक गुड़िया... एक गुड़िया।

अनार कली और भूल भुलय्याँ

एक अदीब जवानी में हज़ारों तरह के अरमानों, ख़्वाहिशों और हौसलों के साथ व्यवहारिक जीवन में क़दम रखता है लेकिन ज़माने की अवहेलना, समाज की जड़ता उसे ज़िंदा क़ब्र में धकेल देती है और वो हीन भावना में मुबतला हो जाता है। अनार कली और भूल-भुलय्याँ में एक ऐसे ही अदीब की कहानी बयान की गई है जो बेपनाह दिमाग़ी मेहनत के बाद भी आर्थिक रूप से स्थाई नहीं हो पाता। वो एक दिन बाज़ार में मारा मारा फिरता है। अपनी काल्पनिक बीवी के लिए कपड़े ख़रीदता है लेकिन जेब में पैसे न होने पर दुकानदार से क्षमा माँग लेता है। अपने काल्पनिक बच्चे के लिए चंद आने की गुड़िया ख़रीदता है और अपनी कोठरी में आकर सो रहता है। ख़्वाब में जब वो अपने बच्चे को गुड़िया देने की इच्छा व्यक्त करता है तो उसकी बीवी हसरत से कहती है कि मेरी क़िस्मत में बच्चा कहाँ और उसकी नींद टूट जाती है।

शादी के तोहफ़े

विवाहित, शिक्षित लेकिन लेकिन बेरोज़गार व्यक्ति के अभावों को बयान करती हुई कहानी है। दूल्हा भाई रोज़गार की तलाश में कई साल से अपने ससुराल में मुक़ीम हैं। रोज़गार के ग़म से नजात पाने के लिए वो किताबों का सहारा लेते हैं लेकिन उनकी एक साली सर्वत अपनी अदाओं से उन्हें लुभा लेती है और वक़्ती तौर पर वो अपनी ज़ेहनी उलझनों से नजात पा जाते हैं। शादी के मौक़े पर सारे रिश्तेदार सर्वत को तोहफ़े देते हैं लेकिन अपनी बीवी की हसरतनाक ख़्वाहिश के बावजूद वो सर्वत के लिए कोई तोहफ़ा ख़रीद नहीं पाते। सितम बाला-ए-सितम जब सर्वत ससुराल से वापस आती है तो वो दूल्हा भाई को अपने कमरे में बुला कर एक एक तोहफ़ा दिखाती है जो उनके लिए होश उड़ाने वाला बन जाता है। डबडबाई आँखें लेकर वो सर्वत के कमरे से उठते हैं। आँसू उनके कमरे की चौखट पर आकर गिरते हैं और दूल्हा भाई कहते हैं, ये थे मेरे तोहफ़े, उन्हें भी मैं सर्वत के सामने पेश न कर सका।

Recitation

Jashn-e-Rekhta | 13-14-15 December 2024 - Jawaharlal Nehru Stadium , Gate No. 1, New Delhi

Get Tickets
बोलिए