आलम ख़ुर्शीद
ग़ज़ल 48
अशआर 26
पूछ रहे हैं मुझ से पेड़ों के सौदागर
आब-ओ-हवा कैसे ज़हरीली हो जाती है
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पीछे छूटे साथी मुझ को याद आ जाते हैं
वर्ना दौड़ में सब से आगे हो सकता हूँ मैं
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बहुत सुकून से रहते थे हम अँधेरे में
फ़साद पैदा हुआ रौशनी के आने से
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मोहब्बतों के कई रंग रूप होते हैं
फ़रेब-ए-यार से कोई गिला नहीं करते
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हाथ पकड़ ले अब भी तेरा हो सकता हूँ मैं
भीड़ बहुत है इस मेले में खो सकता हूँ मैं
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पुस्तकें 11
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