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अली अहमद जलीली

1921 - 2005

शायर और आलोचक, जलील मानकपुरी के सुपुत्र

शायर और आलोचक, जलील मानकपुरी के सुपुत्र

अली अहमद जलीली

ग़ज़ल 13

अशआर 15

काटी है ग़म की रात बड़े एहतिराम से

अक्सर बुझा दिया है चराग़ों को शाम से

किनारों से मुझे ना-ख़ुदाओ दूर ही रक्खो

वहाँ ले कर चलो तूफ़ाँ जहाँ से उठने वाला है

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ग़म से मंसूब करूँ दर्द का रिश्ता दे दूँ

ज़िंदगी तुझे जीने का सलीक़ा दे दूँ

नशेमन ही के लुट जाने का ग़म होता तो क्या ग़म था

यहाँ तो बेचने वाले ने गुलशन बेच डाला है

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बन रहे हैं सतह-ए-दिल पर दाएरे

तुम ने तो पत्थर कोई फेंका नहीं

पुस्तकें 28

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Khushi ne mujhko thukraya

बेगम अख़्तर

ख़ुशी ने मुझ को ठुकराया है दर्द-ओ-ग़म ने पाला है

बेगम अख़्तर

अब छलकते हुए साग़र नहीं देखे जाते

बेगम अख़्तर

ख़ुशी ने मुझ को ठुकराया है दर्द-ओ-ग़म ने पाला है

बेगम अख़्तर

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