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अल्लामा इक़बाल के क़िस्से
इक़बाल की दाढ़ी और मौलाना का हाथ
अल्लामा इक़बाल तमाम उम्र इस्लाम की शान और मुसलमानों के बारे में शायरी करते रहे लेकिन इस्लामी रिवाज के मुताबिक़ दाढ़ी नहीं रखते थे। एक मौलाना अपने एक मुक़द्दमे में मशवरे के लिए उनके पास आते रहते थे। वो अपनी बहन को जायदाद के हिस्से से महरूम करना चाहते थे।
ऐ चौधरी साहब! आज आप नंगे ही चले आए
पंजाब के मशहूर क़ानून-दाँ चौधरी शहाब उद्दीन अ’ल्लामा के बे-तकल्लुफ़ दोस्तों में से थे। उनका रंग काला और डील-डोल बहुत ज़्यादा था। एक रोज़ वो सियाह सूट पहने हुए और सियाह टाई लगाए कोर्ट में आए तो इक़बाल ने उन्हें सर-ता-पा सियाह देखकर कहा, “ऐ चौधरी साहब!
इक़बाल हमेशा देर ही से आता है
अ’ल्लामा इक़बाल बचपन ही से बज़्ला-संज और शोख़ तबीयत वाक़े हुए थे। एक रोज़ (जब उनकी उम्र ग्यारह साल की थी) उन्हें स्कूल पहुँचने में देर हो गई। मास्टर साहब ने पूछा, “इक़बाल तुम देर से आए हो।” इक़बाल ने बे-साख़्ता जवाब दिया, “जी हाँ, इक़बाल हमेशा देर ही
हिमाक़त का एतिराफ़
एक दफ़ा अल्लामा से सवाल किया गया कि अक़्ल की इंतिहा क्या है? जवाब दिया, “हैरत” फिर सवाल हुआ, “इश्क़ की इंतिहा क्या है?” फ़रमाया, “इश्क़ की कोई इंतिहा नहीं है।” सवाल करने वाले ने फिर पूछा, “तो आपने ये कैसे लिखा। तेरे इश्क़ की इंतिहा चाहता हूँ।” अल्लामा
मोटर में कुत्ते
फ़क़ीर सय्यद वहीद उद्दीन के एक अ’ज़ीज़ को कुत्ते पालने का बेहद शौक़ था। एक रोज़ वो लोग कुत्तों के हमराह अ’ल्लामा से मिलने चले आए। ये लोग उतर-उतर कर अंदर जा बैठे और कुत्ते मोटर ही में रहे। इतने में अ’ल्लामा की नन्ही बच्ची मुनीरा भागती हुई आई और बाप से कहने
क़व्वाल का वज्द
ख़िलाफ़त-ए-तहरीक के ज़माने में मौलाना मुहम्मद अली, इक़बाल के पास आए और ला’नत-मलामत करते हुए बोले, “ज़ालिम तुमने लोगों को गर्मा कर उनकी ज़िंदगी में हैजान बरपा कर दिया है। ख़ुद किसी काम में हिस्सा नहीं लेते।” इस पर इक़बाल ने जवाब दिया, “तुम बिल्कुल बे-समझ
तवाइफ़ से रिश्ता
अख़बार “वतन” के एडिटर मौलवी इंशाअल्लाह ख़ाँ अल्लामा के हाँ अक्सर हाज़िर होते थे। उन दिनों अल्लामा अनार कली बाज़ार में रहते थे और वहीं तवाइफ़ें आबाद थीं। म्युनिस्पिल कमेटी ने उनके लिए दूसरी जगह तजवीज़ की। चुनांचे उन्हें वहाँ से उठा दिया गया। उस ज़माने में
चौधरी साहब का साबुन!
अल्लामा इक़बाल चौधरी शहाब उद्दीन से हमेशा मज़ाक़ करते थे। चौधरी साहब बहुत काले थे। एक दिन अल्लामा चौधरी साहब से मिलने उनके घर गए। बताया गया कि चौधरी जी ग़ुस्लख़ाने में हैं। इक़बाल कुछ देर इंतज़ार में बैठे रहे। जब चौधरी साहब बाहर आए तो इक़बाल ने कहा, “पहले
अनोखी तस्नीफ़
अल्लामा इक़बाल को हुकूमत की तरफ़ से “सर” का ख़िताब मिला तो उन्होंने उसे कुबूल करने की ये शर्त रखी कि उनके उस्ताद मौलाना मीर हसन को भी “शम्स-उल-उलमा” के ख़िताब से नवाज़ा जाए। हुक्काम ने ये सवाल उठाया कि उनकी कोई तस्नीफ़ नहीं, उन्हें कैसे ख़िताब दिया जा सकता
इफ़्तारी का इंतिज़ाम
माह रमज़ान में एक बार प्रोफ़ेसर हमीद अहमद ख़ाँ, डाक्टर सईद उल्लाह और प्रोफ़ेसर अब्दुल वाहिद अल्लामा इक़बाल के घर पर हाज़िर हुए। कुछ देर बाद मौलाना अब्दुल मजीद सालिक और मौलाना ग़ुलाम रसूल मेहर भी तशरीफ़ ले आए। इफ़्तारी के वक़्त अल्लामा ने घंटी बजाकर नौकर को
रौग़न फ़ास्फ़ोरस का एहसान
ख़्वाजा हसन निज़ामी ने एक मर्तबा अपने अख़बार “मुनादी” में लिखा कि मैं डाक्टर इक़बाल को हिंदुस्तान का अ’ज़ीम शायर नहीं समझता। उन्हीं दिनों डाक्टर इक़बाल के घुटनों में दर्द हो गया। ख़्वाजा साहब ने उन्हें अपना रौग़न फ़ास्फ़ोरस भेजा जिससे उन्हें इफ़ाक़ा हो गया।