आलोक मिश्रा
ग़ज़ल 30
अशआर 13
एक पत्ता हूँ शाख़ से बिछड़ा
जाने बह कर मैं किस दिशा जाऊँ
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क्यूँ बताता नहीं कोई कुछ भी
आख़िर ऐसा भी क्या हुआ है मुझे
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क्या क़यामत है कि तेरी ही तरह से मुझ से
ज़िंदगी ने भी बहुत दूर का रिश्ता रक्खा
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जाने किस बात से दुखा है बहुत
दिल कई रोज़ से ख़फ़ा है बहुत
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वीडियो 7
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