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आलोक मिश्रा

1985 | दिल्ली, भारत

आलोक मिश्रा

ग़ज़ल 30

अशआर 13

अजीब ख़्वाब था आँखों में नींद छोड़ गया

कि नींद गुज़री है मुझ को ज़लील करते हुए

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एक पत्ता हूँ शाख़ से बिछड़ा

जाने बह कर मैं किस दिशा जाऊँ

क्यूँ बताता नहीं कोई कुछ भी

आख़िर ऐसा भी क्या हुआ है मुझे

क्या क़यामत है कि तेरी ही तरह से मुझ से

ज़िंदगी ने भी बहुत दूर का रिश्ता रक्खा

जाने किस बात से दुखा है बहुत

दिल कई रोज़ से ख़फ़ा है बहुत

वीडियो 7

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वीडियो का सेक्शन
शायर अपना कलाम पढ़ते हुए
इस सियह रात में कोई तो सहारा मिल जाए

आलोक मिश्रा

Bujhti aankhon mein tere khwab ka bosa rakha

आलोक मिश्रा

Hum musalsal ek bayaan dete huye

आलोक मिश्रा

Jaane kis baat se dukha hai bahut

आलोक मिश्रा

Jazb kuch titliyon ke par mein hai

आलोक मिश्रा

Wo be asar musalsal zalil karte huye

आलोक मिश्रा

साल ये कौन सा नया है मुझे

आलोक मिश्रा

ऑडियो 6

चीख़ की ओर मैं खिंचा जाऊँ

जज़्ब कुछ तितलियों के पर में है

जाने किस बात से दुखा है बहुत

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