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अमानत लखनवी

1815 - 1858 | लखनऊ, भारत

अपने नाटक 'इन्द्र सभा' के लिए प्रसिद्ध, अवध के आख़िरी नवाब वाजिद अली शाह के समकालीन

अपने नाटक 'इन्द्र सभा' के लिए प्रसिद्ध, अवध के आख़िरी नवाब वाजिद अली शाह के समकालीन

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ग़ज़ल

आग़ोश में जो जल्वागर इक नाज़नीं हुआ

नोमान शौक़

उलझा दिल-ए-सितम-ज़दा ज़ुल्फ़-ए-बुताँ से आज

नोमान शौक़

ख़ाना-ए-ज़ंजीर का पाबंद रहता हूँ सदा

नोमान शौक़

ज़मज़मा किस की ज़बाँ पर ब-दिल-ए-शाद आया

नोमान शौक़

दिखलाए ख़ुदा उस सितम-ईजाद की सूरत

नोमान शौक़

बानी-ए-जौर-ओ-जफ़ा हैं सितम-ईजाद हैं सब

नोमान शौक़

भूला हूँ मैं आलम को सरशार इसे कहते हैं

नोमान शौक़

रूह को राह-ए-अदम में मिरा तन याद आया

नोमान शौक़

लुत्फ़ अब ज़ीस्त का ऐ गर्दिश-ए-अय्याम नहीं

नोमान शौक़

सुब्ह-ए-विसाल-ए-ज़ीस्त का नक़्शा बदल गया

नोमान शौक़

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