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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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अनीस अब्र

ग़ज़ल 10

अशआर 8

'अब्र' दुनिया को छोड़ जाने का

इक बहाना तलाश करना है

आज इंसाँ को तपते सहरा में

बहता दरिया तलाश करना है

मैं मुस्कुराता मगर दी अश्क ने मोहलत

ख़ुशी जब एक मिली साथ ग़म हज़ार मिले

मौत की आरज़ू में दीवाने

उम्र-भर ज़िंदगी से लड़ते हैं

लफ़्ज़ यूँ ख़ामुशी से लड़ते हैं

जिस तरह ग़म हँसी से लड़ते हैं

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