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अंजुम आज़मी

1931 - 1990 | कराची, पाकिस्तान

पाकिस्तानी शायर और लेखक, ‘लब ओ रुख़सार’ नाम से मुहब्बत की नज़्मों का संग्रह प्रकाशित हुआ ‘शायरी की ज़बान’ उनके आलोचनात्मक लेखों का संग्रह है

पाकिस्तानी शायर और लेखक, ‘लब ओ रुख़सार’ नाम से मुहब्बत की नज़्मों का संग्रह प्रकाशित हुआ ‘शायरी की ज़बान’ उनके आलोचनात्मक लेखों का संग्रह है

अंजुम आज़मी के शेर

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तुझ से पर्दा नहीं मिरे ग़म का

तू मिरी ज़िंदगी का महरम है

दिल का'बा है ने कलीसा है

तेरा घर है हरीम-ए-मरियम है

अब वो जोश-ए-वफ़ा है वो अंदाज़-ए-तलब

अब भी लेकिन तिरे कूचे से गुज़र होता है

बिठा के सामने तुम को बहार में पी है

तुम्हारे रिंद ने तौबा भी रू-ब-रू कर ली

कोई तो ख़ैर का पहलू भी निकले

अकेला किस तरह ये शर रहेगा

ख़ाक ने कितने बद-अतवार किए हैं पैदा

ये होते तो उसी ख़ाक से क्या क्या होता

ख़ाली भी तो कर ख़ाना-ए-दिल दुनिया से

इस घर में मिरी जान ख़ुदा आएगा

आओ ख़ुश हो के पियो कुछ कहो वाइज़ को

मय-कदे में वो तमाशाई है कुछ और नहीं

इलाज उस का गुज़र जाना है जाँ से

गुज़र जाने का जाँ से डर रहेगा

ग़लत है जज़्बा-ए-दिल पर नहीं कोई इल्ज़ाम

ख़ुशी मिली हमें जब तो ग़म की ख़ू कर ली

मेरी दुनिया में अभी रक़्स-ए-शरर होता है

जो भी होता है ब-अंदाज़-ए-दिगर होता है

निकलो भी कभी सूद-ओ-ज़ियाँ से वर्ना

कूचे में तिरे कौन भला आएगा

क्यूँ हुआ मुझ को इनायत की नज़र का सौदा

आज रुस्वाई ही रुस्वाई है कुछ और नहीं

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