अंजुम बाराबंकवी के शेर
मशहूर भी हैं बदनाम भी हैं ख़ुशियों के नए पैग़ाम भी हैं
कुछ ग़म के बड़े इनआ'म भी हैं पढ़िए तो कहानी काम की है
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ये बादशाह नहीं है फ़क़ीर है सूरज
हमेशा रात की झोली से दिन निकालता है
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जिस बात का मतलब ख़ुश्बू है हर गाँव के कच्चे रस्ते पर
उस बात का मतलब बदलेगा जब पक्की सड़क आ जाएगी
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जो दोस्तों की मोहब्बत से जी नहीं भरता
तो आस्तीन में दो-चार साँप पाल के रख
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ग़ैर तो आँसू पोछेंगे
धोका देंगे अपने लोग
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ऐ आसमान हर्फ़ को फिर ए'तिबार दे
वर्ना हक़ीक़तों को कहानी लिखेंगे लोग
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मुझे सोने की क़ीमत मत बताओ
मैं मिट्टी हूँ मिरी अज़्मत बहुत है
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तुझे तो कितनी बहारें सलाम भेजेंगी
अभी ये फूल सा चेहरा ज़रा सँभाल के रख
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मैं ने सूरज की तरह ख़ुद को बनाया जिस दिन
देखने आएँगे ये मग़रिब-ओ-मशरिक़ मुझ को
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घर-बार छोड़ कर वो फ़क़ीरों से जा मिले
चाहत ने बादशाहों को महकूम कर दिया
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ज़रा महफ़ूज़ रस्तों से गुज़रना
तुम्हारी शहर में शोहरत बहुत है
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जो सारे दिन की थकन ओढ़ कर मैं सोता हूँ
तो सारी रात मिरा घर सफ़र में रहता है
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शोहरत की रौशनी हो कि नफ़रत की तीरगी
क्या क्या उसे दिया है ख़ुदा ने पता करो
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किताब-ए-इश्क़ के जो मो'तबर रिसाले हैं
उन्हीं में हुस्न के कुछ मुस्तनद हवाले हैं
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मेराज-ए-अक़ीदत है कि ता'वीज़ की सूरत
बाज़ू पे कोई ख़ाक-ए-वतन बाँधे हुए है
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मैं ऐसे दर का गदा हूँ जहाँ पे मोती क्या
हज़ार बार मुझे संग आब-दार मिले
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तुझ को ख़बर नहीं है मगर इक तिरे बग़ैर
ये दिल-पसंद शहर भी ख़ाली लगा मुझे
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