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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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अंजुम मानपुरी

1881 - 1958 | गया, भारत

प्रसिद्ध शायर और लेखक, साहित्यिक पत्रिका ‘नदीम’ के सम्पादक, सय्यद सुलेमान नदवी के सहपाठी

प्रसिद्ध शायर और लेखक, साहित्यिक पत्रिका ‘नदीम’ के सम्पादक, सय्यद सुलेमान नदवी के सहपाठी

अंजुम मानपुरी के शेर

वतन के लोग सताते थे जब वतन में थे

वतन की याद सताती है जब वतन में नहीं

आज 'अंजुम' मुस्कुरा कर उस ने फिर देखा मुझे

शिकवा-ए-जौर-ओ-जफ़ा फिर भूल जाना ही पड़ा

पूछ उस की दिल-अफ़्सुर्दगी की कैफ़िय्यत

जो ग़म-नसीब ख़ुशी में भी मुस्कुरा सका

ये दो-दिली में रहा घर घाट का 'अंजुम'

बुतों को कर सका ख़ुश ख़ुदा को पा सका

काम 'अंजुम' का जो तमाम किया ये आप ने वाक़ई ख़ूब किया

कम-बख़्त इसी के लाएक़ था अब आप अबस पछताते हैं

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