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अरमान नज्मी

1940 - 2020 | पटना, भारत

अरमान नज्मी

ग़ज़ल 23

नज़्म 1

 

अशआर 4

घुटन से बच के कहीं साँस ले नहीं सकते

जहाँ भी जाएँ ये काला धुआँ तो सर पर है

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'अरमाँ' बस एक लज़्ज़त-ए-इज़हार के सिवा

मिलता है क्या ख़याल को लफ़्ज़ों में ढाल कर

हुआ है क़र्या-ए-जाँ में ये सानेहा कैसा

मिरे वजूद के अंदर है ज़लज़ला कैसा

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बचा क्या रह गया कालक भरे झुलसे मकानों में

उजाड़ी बस्तियों की बे-निशानी का तमाशा कर

पुस्तकें 6

 

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