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असग़र गोंडवी

1884 - 1936 | गोण्डा, भारत

प्रख्यात पूर्व-आधुनिक शायर, अपने सूफ़ियाना लहजे के लिए प्रसिद्ध।

प्रख्यात पूर्व-आधुनिक शायर, अपने सूफ़ियाना लहजे के लिए प्रसिद्ध।

असग़र गोंडवी

ग़ज़ल 38

अशआर 57

'असग़र' हरीम-ए-इश्क़ में हस्ती ही जुर्म है

रखना कभी पाँव यहाँ सर लिए हुए

इश्वों की है उस निगह-ए-फ़ित्ना-ज़ा की है

सारी ख़ता मिरे दिल-ए-शोरिश-अदा की है

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क़हर है थोड़ी सी भी ग़फ़लत तरीक़-ए-इश्क़ में

आँख झपकी क़ैस की और सामने महमिल था

छुट जाए अगर दामन-ए-कौनैन तो क्या ग़म

लेकिन छुटे हाथ से दामान-ए-मोहम्मद

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सौ बार तिरा दामन हाथों में मिरे आया

जब आँख खुली देखा अपना ही गरेबाँ था

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जगजीत सिंह

ऑडियो 21

आलाम-ए-रोज़गार को आसाँ बना दिया

आशोब-ए-हुस्न की भी कोई दास्ताँ रहे

इक आलम-ए-हैरत है फ़ना है न बक़ा है

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