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आसिफ़ फर्ऱुखी
कहानी 15
लेख 1
उद्धरण 8
पुराने ज़माने में दस्तूर था कि कारवाँ के पीछे एक आदमी चलता था जिसके ज़िम्मे ये देखना भालना था कि क़ाफ़िले वालों की कोई चीज़ गिरी रह जाए या क़ाफ़िले से कोई बिछड़ जाए तो ये उठाता जाए। मैं उर्दू अफ़साने में यही काम कर रहा हूँ। सड़क के किनारे बैठ कर कौड़ियों के मोल हीरे बेचता हूँ और आतिश-फ़िशाँ पर गुलाब उगाता हूँ।
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