Font by Mehr Nastaliq Web

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

रद करें डाउनलोड शेर
Ateeq Anzar's Photo'

अतीक़ अंज़र

1963 | क़तर

अतीक़ अंज़र के शेर

811
Favorite

श्रेणीबद्ध करें

शाम के धुँदलकों में डूबता है यूँ सूरज

जैसे आरज़ू कोई मेरे दिल में मरती है

बिछड़ते वक़्त अना दरमियान थी वर्ना

मनाना दोनों ने इक दूसरे को चाहा था

ग़म की बंद मुट्ठी में रेत सा मिरा जीवन

जब ज़रा कसी मुट्ठी ज़िंदगी बिखरती है

गाँव के परिंदे तुम को क्या पता बिदेसों में

रात हम अकेलों की किस तरह गुज़रती है

तुझ से मिल कर भी उदासी नहीं जाती दिल की

तू नहीं और कोई मेरी कमी हो जैसे

वो ग़ज़ल की किताब है प्यारे

उस को पढ़ना सवाब है प्यारे

तिरी ज़ुल्फ़ों के साए में अगर जी लूँ मैं पल-दो-पल

हो फिर ग़म जो मेरे नाम सहरा लिख दिया जाए

दूर मुझ से रहते हैं सारे ग़म ज़माने के

तेरी याद की ख़ुश्बू दिल में जब ठहरती है

अश्क पलकों पे बिछड़ कर अपनी क़ीमत खो गया

ये सितारा क़ीमती था जब तलक टूटा था

तिरी शोख़ आँखों में बारहा कई ख़्वाब देखे हैं प्यार के

तिरा प्यार मेरा नसीब है किसी और को ये वफ़ा दे

किसी ने भेजा है ख़त प्यार और वफ़ा लिख कर

क़लम से काम दिया है मुझे ख़ुदा लिख कर

उसे देखने की थी आरज़ू मुझे उस की थी बड़ी जुस्तुजू

मगर उस के आरिज़-ए-नाज़ पे मिरी हर निगाह फिसल गई

इक उस की ज़ात से जब मेरा ए'तिबार उठा

तो फिर किसी पे भी आया ए'तिबार मुझे

कहीं बुझती है दिल की प्यास इक दो घूँट से 'अनज़र'

मैं सूरज हूँ मिरे हिस्से में दरिया लिख दिया जाए

मैं तुम से तर्क-ए-तअल्लुक की बात क्यूँ सोचूँ

जुदा जिस्मों से 'अनज़र' कभी भी साए हुए

Recitation

बोलिए