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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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Aziz Bano Darab Wafa's Photo'

अज़ीज़ बानो दाराब वफ़ा

1926 - 2005 | लखनऊ, भारत

लखनऊ की प्रतिष्ठित शायरा जिन्होंने अपनी अभिव्यक्ति में स्त्रीत्व को जगह दी

लखनऊ की प्रतिष्ठित शायरा जिन्होंने अपनी अभिव्यक्ति में स्त्रीत्व को जगह दी

अज़ीज़ बानो दाराब वफ़ा के ऑडियो

ग़ज़ल

अपनी बीती हुई रंगीन जवानी देगा

अज़रा नक़वी

अलावा इक चुभन के क्या है ख़ुद से राब्ता मेरा

अज़रा नक़वी

एक दिए ने सदियों क्या क्या देखा है बतलाए कौन

अज़रा नक़वी

खोल रहे हैं मूँद रहे हैं यादों के दरवाज़े लोग

अज़रा नक़वी

ज़रा सी देर में वो जाने क्या से क्या कर दे

अज़रा नक़वी

ज़िंदगी के सारे मौसम आ के रुख़्सत हो गए

अज़रा नक़वी

हम कोई नादान नहीं कि बच्चों की सी बात करें

अज़रा नक़वी

ख़ुद में उतरूँगी तो मैं भी लापता हो जाऊँगी

अलमास शबी

न याद आया न भूला न सानेहा मुझ को

अमीता परसुराम मीता

फूँक देंगे मिरे अंदर के उजाले मुझ को

अलमास शबी

हटा के मेज़ से इक रोज़ आईना मैं ने

अमीता परसुराम मीता

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