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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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अज़ीज़ नबील

1976 | क़तर

क़तर में रहनेवाले प्रसिद्ध शायर

क़तर में रहनेवाले प्रसिद्ध शायर

अज़ीज़ नबील

ग़ज़ल 35

अशआर 92

फिर नए साल की सरहद पे खड़े हैं हम लोग

राख हो जाएगा ये साल भी हैरत कैसी

सारे सपने बाँध रखे हैं गठरी में

ये गठरी भी औरों में बट जाएगी

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वो एक राज़! जो मुद्दत से राज़ था ही नहीं

उस एक राज़ से पर्दा उठा दिया गया है

एक तख़्ती अम्न के पैग़ाम की

टाँग दीजे ऊँचे मीनारों के बीच

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चुपके चुपके वो पढ़ रहा है मुझे

धीरे धीरे बदल रहा हूँ मैं

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पुस्तकें 15

ऑडियो 4

आँखों के ग़म-कदों में उजाले हुए तो हैं

जिस तरफ़ चाहूँ पहुँच जाऊँ मसाफ़त कैसी

मैं दस्तरस से तुम्हारी निकल भी सकता हूँ

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