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बलवंत सिंह की कहानियाँ
काली तित्री
यह एक ऐसे शख़्स की कहानी है, जो अपने साथी डाकुओं के साथ मिलकर अपनी ही बहन के घर में डाका डालता है। जब वे गहने चुराकर जाने लगते हैं तो ग़लती से उनका एक साथी गोली चला देता है। इससे पूरा गाँव जाग जाता है। गाँव वालों से बाक़ी डाकू तो बचकर निकल जाते हैं लेकिन काली तितरी फँस जाता है। गाँव के कई लोग उसे पहचान लेते हैं और उनमें से एक आगे बढ़कर एक ही वार में उसकी पेट की अंतड़िया बाहर कर देता है।
बाब महंगा सिंह
एक ऐसे शख़्स की कहानी, जो किसी ज़माने में बड़ा कुख़्यात डाकू रहा था और अब गाँव में साधारण ज़िंदगी गुज़ार रहा था। रात को गाँव के नौजवान उसके पास जा बैठते थे और वह उन्हें बीती ज़िंदगी के क़िस्से सुनाया करता था। एक रोज़ उसने ऐसे क़िस्सा सुनाया जिसने उनके सामने औरत की फ़ितरत, उसकी बहादुरी और चालाकी का एक ऐसा पहलू पेश किया जिससे वे सभी अभी तक पूरी तरह अंजान थे।
बाँध
पंजाबी लड़की रानो की कहानी, जो जानती है कि वरियामू उससे मोहब्बत करता है, पर वह उसे छोड़कर केहर सिंह के पीछे लगी रहती है। वह जानती है कि केहर सिंह उससे मोहब्बत नहीं करता है, फिर भी वह उसके इर्द-गिर्द चक्कर लगाती रहती है। इसी में वह केहर सिंह से गर्भवती हो जाती है। वरियामू तब भी उससे ख़ामोश मोहब्बत करता रहता है। इसी मोहब्बत की वजह से वह उसके घर को बाढ़ से बचाने के लिए अकेला ही बारिश में भीगता हुआ बाँध बना देता है।
आबशार
ऐसे दो लोगों की कहानी है जो एक ही लड़की से बारी-बारी मोहब्बत करते हैं, पर दोनों में से कोई भी उसे हासिल नहीं कर पाता। वह लड़की एक पठान के साथ घर से भागकर आई थी। पठान उसे झरने के पास बने उस बंगले में ठहराता है और ख़ुद पैसों का इंतज़ाम करने चला जाता है। कई हफ़्ते बीतने के बाद भी वह लौटकर नहीं आता। इसी दरमियान वहाँ कॉलेज का एक नौजवान आता है और लड़की उसमें दिलचस्पी लेने लगती है। वह नौजवान भी उसे छोड़कर चला जाता है तो लड़की झरने में कूदकर जान दे देती है।
लम्हे
लम्हाती ख़ुशी के बाद दुख से दो-चार होने की कहानी है। उमाकांत बस में दो बच्चों वाली एक ख़ूबसूरत औरत को देखता है, वक़्त गुज़ारी के लिए वो उससे बातें करने लगता है। पहला झटका उसे तब लगता है जब उसे मालूम होता है कि वो औरत उसकी हम मज़हब नहीं है और फिर जब वो बस से उतरती है तो उसको लंगड़ा कर चलते हुए देखकर उस पर हमदर्दी का जज़्बा तारी हो जाता है। सांप्रदायिक दंगे इंसान की सोच को किस तरह बदल देते हैं और उनका नफ़्सियाती रद्द-ए-अमल क्या होता है, उसकी एक झलक इस कहानी में पेश की गई है।
जग्गा
यह पंजाब के एक मशहूर डाकू जग्गा की कहानी है, जिसे गुरनाम कौर नाम की लड़की से मोहब्बत हो जाती है। उसकी मोहब्बत में वह सब कुछ छोड़ देता है और एक गुरुद्वारा में रहने लगता है। मगर जब उसे पता चलता है कि गुरनाम दिलीप से मोहब्बत करती है तो वह दिलीप से भिड़ जाता है। फिर भी उसे गुरनाम हासिल नहीं होती।
पहला पत्थर
बुनियादी तौर पर यह कहानी औरत के यौन शोषण की कहानी है, लेकिन लेखक ने इसमें तक़सीम के वक़्त की सूरत-ए-हाल और सांप्रदायिकता का नक़्शा भी खींचा है। सरदार वधावा सिंह की बड़ी सी हवेली में ही फ़र्नीचर मार्ट और प्रिंटिंग प्रेस है, जिसके कारीगर, सरदार की दोनों पत्नियाँ, शरणार्थी देवी दास की तीनों बेटियाँ, सरदार के दोनों बेटे आपस में इस तरह बे-तकल्लुफ़ हैं कि उनके बीच हर तरह का मज़ाक़ जारी है। सरदार की दोनों पत्नियाँ कारख़ाने के कारीगरों में दिलचस्पी लेती हैं तो कारीगर देवी दास की बेटी घिक्की और निक्की को हवस का निशाना बनाते हैं। चमन घिक्की से शादी का वादा कर के जाता है तो पलट कर नहीं देखता। जल कुक्कड़ निक्की को गर्भवती कर देता है और फिर वो कुँवें में छलाँग लगा कर ख़ुदकुशी कर लेती है। साँवली अंधी है, उसको एक शरणार्थी कुलदीप गर्भवती कर देता है। साँवली की हालत देखकर सारे कारीगरों के अंदर हमदर्दी का जज़्बा पैदा हो जाता है और कारख़ाने का सबसे शोख़ कारीगर बाज सिंह भी ममता के जज़्बे से शराबोर हो कर साँवली को बेटी कह देता है।
अली! अली!
यह नौजवानों में जोश भर देने वाले नारे ‘अली-अली’ की कहानी है। वरसा एक कड़ियल सिख नौजवान है। एक मेले में पुलिस के साथ उसका किसी बात पर फ़ौजदारी हो जाती है, तो पुलिस उसे ढूँढती फिरती है लेकिन वह उनके हाथ नहीं आता। एक रोज़़ जब वह अपनी महबूबा से मिलने गया होता है, तंदुरुस्त घोड़े पर सवार थानेदार उसे पकड़ने पहुँचता है। पैदल होने के बाद भी वरसा उसकी पकड़ में नहीं आता। वह 'अली-अली' का नारा लगाता हुआ हरदम उसकी पहुँच से दूर हो जाता है।
तावीज़
एक ऐसे शख़्स की कहानी है, जो ख़ुद को किसी राजा साहब का आदमी बताकर एक होटल में ठहरता है। उसके साथ एक बच्ची भी होती है। मगर उसके पास एक भी पैसा नहीं होता। अपने ख़र्च के लिए भी वह होटल के मालिक से किसी न किसी बहाने से पैसे माँगता रहता है। आख़िर में वह उसे एक तावीज़ देकर होटल से चला जाता है। उसके जाने के बाद जब वह उस तावीज़ को खोलकर देखता है तो उसकी सारी हकीक़त उसे सामने खुल जाती है।
तीसरा सिग्रेट
एक ऐसे शख़्स की कहानी है, जिसका दोस्त ब्लैक में रबर बेचने वाले एक व्यापारी को पकड़ने के लिए उसका इस्तेमाल करता है। वह व्यापारी के लिए एक दावत का इंतिज़ाम करता है, जिसमें एक लड़की भी शामिल होती है। लड़की की तलाश में कनॉट प्लेस में खड़ा हुआ वह तीसरा सिगरेट पी ही रहा होता है कि एक आदमी उसके पास आता है और बात पक्की करके चला जाता है। बाद में वह आदमी उस शख़्स के दफ़्तर में नौकरी माँगने आता है और बताता है कि वह लड़की जो उसने उसे लाकर दी थी, वह कोई और नहीं उसकी बहन थी।
तीन बातें
"बेरोज़गारी से परेशान हो कर फ़ौज में भर्ती होने वाले एक जवान की कहानी है। रवेल सिंह एक मज़बूत और कड़ियल जवान है जो कभी-कभार चोरी करना भी ग़लत नहीं समझता। उसकी माँ और महबूबा उसको चोरी से मना करने के लिए अपनी मोहब्बतों का वास्ता देकर लाहौर नौकरी करने भेज देती हैं। लाहौर में वो कई दिन तक मारा मारा फिरता है लेकिन उसे कोई नौकरी नहीं मिलती और वो एक दिन गाँव लौट जाने का फ़ैसला कर लेता है। संयोग से वो एक बाग़ में जा निकलता है जहाँ पर फ़ौजियों की तस्वीरें और जवानों की शौर्य गाथाओं के आकर्षक बोर्ड लगे होते हैं। वहीं एक बोर्ड पर तीन बातें शीर्षक से एक बोर्ड होता है जिस पर सिपाहियों के चित्रों के साथ अच्छी ख़ुराक, आकर्षक वेतन और जल्दी तरक़्क़ी लिखा होता है। रवेल सिंह पता पूछते हुए भर्ती दफ़्तर की ओर रवाना हो जाता है।"
गुमराह
आजीविका की तलाश और शहरी ज़िंदगी में उलझ कर इंसान नैसर्गिक सौंदर्य, प्राकृतिक दृश्यों और वातावरण से कट कर रह गया है। ज़िंदगी का मफ़हूम बहुत सिमट कर रह गया है। रमेश एक बारह साल का मासूम सा बच्चा है, उसके स्कूल टीचर उसके बाप से शिकायत करते हैं कि वो अक्सर स्कूल से ग़ायब रहता है,अगर यही ग़फ़लत रही तो उनका बच्चा गुमराह हो जाएगा। एक दिन तफ़्तीश की नीयत से जब रमेश के पीछे पीछे उसका बाप जाता है तो देखता है कि रमेश बाज़ीगर का तमाशा देख रहा है, साँप और सँपेरों के बच्चों से खेल रहा है, नदी के किनारे बैठ कर शिकार देख रहा है, प्राकृतिक दृश्यों से ख़ुश हो रहा है। हर जगह के बच्चे, बड़े, बूढ़े उससे मानूस नज़र आ रहे हैं और उसे मुस्कुरा कर देख रहे हैं। ये दृश्य देखकर उसे अपना बचपन याद आ जाता है और फिर वो रमेश के साथ दिन-भर यूँही घूमता रहता है। घर वापस आने के बाद रमेश उसके कमरे में बैठ कर पढ़ने का वादा करता है और अपने वादे पर क़ायम भी रहता है लेकिन उसी दिन से रमेश का बाप उस ज़िंदगी की तलाश में हैरान-ओ-परेशान रहता है।
काले कोस
भारत विभाजन के बाद हिज्रत और फिर एक नई धरती पर क़दम रखने की ख़ुशी बयान की गई है। गामा एक बदमाश आदमी है जो अपने परिवार के साथ पाकिस्तान हिज्रत कर रहा है। दंगाइयों से बचने की ख़ातिर वो आम शाहराह से हट कर सफ़र करता है और उसकी रहनुमाई के लिए उसका बचपन का सिख दोस्त फलोर सिंह आगे आगे चलता है। पाकिस्तान की सरहद शुरू होने से कुछ पहले ही फलोरे गामा को छोड़ देता है और इशारे से बता देता है कि अमुक खेत से पाकिस्तान शुरू हो रहा है। गामा पाकिस्तान की मिट्टी को उठा कर उसका स्पर्श महसूस करता है और फिर पलट कर फलोर सिंह के पास इस अंदाज़ से मिलने आता है जैसे वो सरज़मीन-ए-पाकिस्तान से मिलने आया हो।
रास्ता चलती औरत
ताक़तवर के सामने लफ़ंगों की ख़ुद-सुपुर्दगी की कहानी है। बूटा सिंह अपनी नई-नवेली ख़ूबसूरत दुल्हन के साथ अपने गाँव जा रहा था कि रास्ते में बैठे हुए जगीर सिंह और उसके साथी उसको छेड़ते हैं और हीरों की हिफ़ाज़त का तंज़ करते हैं। बूटा सिंह अपनी लाठी के जौहर दिखा कर लोगों को हैरान कर देता है। फिर जगीर सिंह से कहता है कि आपकी बात का तो मैं ने जवाब दे दिया, लेकिन क्या इस गाँव में कोई अपने बाप का तुख़्म और माँ का लाल नहीं है जो हीरे झपटने की ख़्वाहिश रखता हो। जगीर सिंह बूटा सिंह से कहता है इस गांव में कोई अपने बाप का तुख़्म और माँ का लाल नहीं है।
कठिन डगरिया
इस कहानी में जैसे को तैसा वाला मामला बयान किया गया है। रखी राम और बैजनाथ दोस्त हैं, दोनों की पत्नियां ख़ूबसूरत हैं लेकिन दोनों को अपनी पत्नी से दिलचस्पी नहीं है बल्कि एक दूसरे की पत्नी में यौन आकर्षण महसूस करते हैं। रखी राम का दिल्ली जाने का प्रोग्राम होता है लेकिन ऐन वक़्त पर प्रोग्राम कैंसिल हो जाता है तो वो बैजनाथ के घर जा कर कामिनी से आनंद उठाने का कार्यक्रम बना लेता है। उधर बैजनाथ रखी राम की पत्नी शांता से आनंद उठाने की नीयत से तैयार हो रहा होता है कि रखी राम उसके घर पहुंच जाता है। बैजनाथ चौंकता ज़रूर है लेकिन वो दावत का बहाना बना कर घर से चला जाता है। रखी राम कामिनी से आनंदित होते हैं और फिर जब घर पहुंचते हैं तो गली के पनवाड़ी जिया से मालूम होता है कि बैजनाथ उससे मिलने आए थे, काफ़ी देर इंतज़ार के बाद वापस चले गए।
हिन्दुस्ताँ हमारा
जंग-ए-आज़ादी के ज़माने में अंग्रेज़ों के रंग भेद और हिंदुस्तानियों से भेदभाव को इस कहानी में बयान किया गया है। जगजीत सिंह एक लेफ्टिनेंट है जो अपनी गर्भवती पत्नी के साथ शिमला घूमने जा रहा है। सेकेंड क्लास में एक अकेला अंग्रेज़ बैठा हुआ है लेकिन वो जगजीत सिंह को डिब्बे में घुसने नहीं देता और किसी और डिब्बे में जाने के लिए कहता है। पुलिस वाले और रेलवे का अमला भी जब उसे समझाने बुझाने में नाकाम हो जाता है तो जगजीत सिंह अंग्रेज़ को डिब्बे से उठा कर प्लेटफ़ार्म पर फेंक देता है और फिर अपनी पत्नी को डिब्बे में बिठा कर, सामान रखकर नीचे उतरता है और अंग्रेज़ की पिटाई करता है।
पेपर वेट
"यह कहानी हुस्न की जादूगरी की कहानी है। फ़र्हत का शौहर छब्बीस बरस की उम्र में बैंक का मैनेजर हो जाता है। वो ख़ुशी ख़ुशी घर आता है लेकिन अपनी ख़ूबसूरत-तरीन बीवी फ़र्हत को खिड़की में बैठे हुए देखकर उसकी सारी ख़ुशी काफ़ूर हो जाती है। उसे खिड़की पर बैठने पर हमेशा एतेराज़ रहा है क्योंकि उसका ख़्याल है कि सामने रहने वाले कॉलेज के छात्र उसकी बीवी को ताकते रहते हैं। फ़र्हत कहती है कि अगर कोई देखता है तो देखने दो। वो इतनी मासूम और भोली-भाली है कि अपने शौहर के एतराज़ की तह में छुपे हुए अर्थ को समझ ही नहीं पाती। शौहर एहसास-ए- कमतरी का शिकार हो कर घर छोड़ने का फ़ैसला कर लेता है। बीवी के नाम विदाई चिट्ठी लिख कर रख देता है और सुबह ही सुबह नौकर से ताँगा मंगवा कर सामान रखवा देता है। बीवी पर विदाई नज़र डालने जाता है तो बीवी की आँख खुल जाती है और वो हाथ बढ़ा कर अपनी आग़ोश में छुपा लेती है। बाहर से नौकर की आवाज़ आती है कि ताँगा में सामान रख दिया गया है। फ़र्हत कहती है सामान उतार कर ऊपर ले आओ और उसका शौहर कुछ नहीं बोलता है।"
सज़ा
यह एक सादा सी मुहब्बत की कहानी है। जीत कौर एक ग़रीब कन्या है, जो अपने बूढ़े दादा और छोटे भाई चन्नन के साथ बहुत मुश्किल से ज़िंदगी बसर कर रही है। नंबरदार के ऋणी होने की वजह से उसका घर कुर्की होने की नौबत आ गई। इस अवसर पर तारा सिंह ख़ामोशी से जीतू के बापू के एक सौ पच्चास रुपए दे आता है,जो उसने भैंस ख़रीदने के लिए जमा कर रखे थे। तारा सिंह जीतू से शादी का ख्वाहिशमंद था लेकिन जीतू उसे पसंद नहीं करती थी। उसे जब चन्नन की ज़बानी मालूम हुआ कि तारा ने ख़ामोशी से मदद की है तो उसके दिल में मुहब्बत का समुंदर लहरें मारने लगता है। एक पुरानी घटना के आधार पर तारा सिंह जीत कौर से कहता है कि आज फिर मेरी नीयत ख़राब हो रही है, आज सज़ा नहीं दोगी, तो जीत कौर अपने जूड़े से चमेली का हार निकाल कर तारा सिंह के गले में डाल देती है।
ग्रन्थि
"ताक़त-ओ-हिम्मत की दहशत और प्रभाव की कहानी है। गाँव के गुरूद्वारे का ग्रंथी केवल इसलिए प्रताणित किया जाता है कि उसकी पत्नी ने धनाड्य लोगों के घर मुफ़्त काम करने से मना कर दिया था। ग्रंथी पर एक औरत लाजो को छेड़ने का आरोप लगाया जाता है और उसे संक्रान्ति के अगले दिन गाँव छोड़ने का हुक्म मिलता है। ग्रंथी गुरु नानक जी का सच्चा श्रद्धालु है, उसे यक़ीन है कि उसकी बेगुनाही साबित होगी और उसे गाँव नहीं छोड़ना पड़ेगा लेकिन जब संक्रान्ति वाले दिन उसका हिसाब किताब कर दिया जाता है तो उसकी रही सही उम्मीद ख़त्म हो जाती है। संयोग से उसी दिन गाँव का बदमाश बनता सिंह मिलता है जो एक दिन पहले ही डेढ़ साल की सज़ा काट कर आया है, वो ग्रंथी का हौसला बढ़ाता है और उसे गाँव न छोड़ने के लिए कहता है। ये ख़बर जैसे ही आम होती है तो गाँव के लोग लाजो को ताने देने लगते हैं कि उसने ग्रंथी पर झूटा इल्ज़ाम लगाया।"
दूध भरी गलियाँ
एक ऐसे शख़्स की कहानी है, जो बहुत ग़लीज़ है और शहर के पुरानी गलियों में घूमता फिरता है। वहाँ उसे एक सफे़द बुजु़र्ग दिखाई देता है, जो उसकी ग़लाज़त को देखकर उसे गंदी-गंदी गालियाँ बकता है। वह किसी गाली का जवाब नहीं देता। इस पर सफे़द बुजु़र्ग ग़ुस्सा होकर उसे इतना मारते हैं कि ख़ुद ही थक कर चूर हो जाते हैं, लेकिन उसे कुछ असर नहीं होता।
सूरमा सिंह
इस कहानी में हुस्न से प्रभावित होने की स्वाभाविक आदत को बयान किया गया है। सूरमा सिंह नाबीना सिख है जो गुरूद्वारे में स्थायी रूप से रहता है। वो चिड़चिड़ा और बद-मिज़ाज है, खाने आदि में कमियाँ निकालता रहता है लेकिन उसके अंधेपन की वजह से उसे कोई कुछ नहीं कहता। अलबत्ता औरतों की तरफ़ उसका लगाव और दिलचस्पी मज़ाक़ का विषय बनती रहती है। एक दिन एक परिवार उसे अपने कमरे में रहने की इजाज़त दे देता है और सूरमा सिंह वहाँ एक औरत की सुंदर आवाज़ सुनकर उसकी उम्र पूछ बैठता है जिस पर हंगामा होता है। सूरमा सिंह औरत के पैर पर सर रखकर माफ़ी मांगता है और इस तरह मुआमला रफ़ा-दफ़ा हो जाता है।
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