बशीरुद्दीन अहमद देहलवी
ग़ज़ल 8
अशआर 12
चराग़ उस ने बुझा भी दिया जला भी दिया
ये मेरी क़ब्र पे मंज़र नया दिखा भी दिया
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कभी दर पर कभी है रस्ते में
नहीं थकती है इंतिज़ार से आँख
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ज़ोर से साँस जो लेता हूँ तो अक्सर शब-ए-ग़म
दिल की आवाज़ अजब दर्द भरी आती है
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ये उन का खेल तो देखो कि एक काग़ज़ पर
लिखा भी नाम मिरा और फिर मिटा भी दिया
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