बेताब देहलवी के शेर
छोड़ दो ग़ैर से मिलना तुम अब ऐ यार कहीं
वर्ना रुस्वा मैं करूँगा सर-ए-बाज़ार कहीं
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क्या कहूँ कैसा ही बल खाया है सिसकी भर के
हाथ मेरा जो ज़रा उस की कमर तक पहुँचा
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