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चराग़ हसन हसरत के क़िस्से
ज़ीस्त का हासिल
किसी मुशायरे में हफ़ीज़ जालंधरी अपनी ग़ज़ल सुनाते-सुनाते चराग़ हसन हसरत से मुख़ातिब हो कर बोले, “हसरत साहब! मिसरा उठाइए।” और हसरत साहब निहायत बेचारगी से कहने लगे, “ज़रूर उठाऊँगा, अपनी तो उम्र ही ग़ज़लों के मिसरे उठाने और मुर्दों को कंधा देने में कट गयी
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बाल-साहित्य1867
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