दानिश अलीगढ़ी
ग़ज़ल 20
अशआर 8
अपने दुश्मन को भी ख़ुद बढ़ के लगा लो सीने
बात बिगड़ी हुई इस तरह बना ली जाए
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आख़िरी वक़्त तलक साथ अंधेरों ने दिया
रास आते नहीं दुनिया के उजाले मुझ को
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रूदाद-ए-शब-ए-ग़म यूँ डरता हूँ सुनाने से
महफ़िल में कहीं उन की सूरत न उतर जाए
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हो के मजबूर ये बच्चों को सबक़ देना है
अब क़लम छोड़ के तलवार उठा ली जाए
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