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दानिश अलीगढ़ी

1931 | अलीगढ़, भारत

दानिश अलीगढ़ी

ग़ज़ल 20

अशआर 8

अपने दुश्मन को भी ख़ुद बढ़ के लगा लो सीने

बात बिगड़ी हुई इस तरह बना ली जाए

आख़िरी वक़्त तलक साथ अंधेरों ने दिया

रास आते नहीं दुनिया के उजाले मुझ को

तेरे फ़िराक़ ने की ज़िंदगी अता मुझ को

तेरा विसाल जो मिलता तो मर गया होता

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रूदाद-ए-शब-ए-ग़म यूँ डरता हूँ सुनाने से

महफ़िल में कहीं उन की सूरत उतर जाए

हो के मजबूर ये बच्चों को सबक़ देना है

अब क़लम छोड़ के तलवार उठा ली जाए

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