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दत्तात्रिया कैफ़ी

1866 - 1955 | दिल्ली, भारत

अरबी, फ़ारसी और संस्कृत के प्रमुख स्कालर

अरबी, फ़ारसी और संस्कृत के प्रमुख स्कालर

दत्तात्रिया कैफ़ी

ग़ज़ल 51

अशआर 35

तू देख रहा है जो मिरा हाल है क़ासिद

मुझ को यही कहना है कि मैं कुछ नहीं कहता

मा'लूम है वादे की हक़ीक़त

बहला लेते हैं अपने जी को

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इश्क़ ने जिस दिल पे क़ब्ज़ा कर लिया

फिर कहाँ उस में नशात ग़म रहे

कोई दिल-लगी दिल लगाना नहीं है

क़यामत है ये दिल का आना नहीं है

वफ़ा पर दग़ा सुल्ह में दुश्मनी है

भलाई का हरगिज़ ज़माना नहीं है

लेख 6

रेखाचित्र 1

 

पुस्तकें 38

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