एज़ाज़ अहमद आज़र के शेर
वो सारी ख़ुशियाँ जो उस ने चाहीं उठा के झोली में अपनी रख लीं
हमारे हिस्से में उज़्र आए जवाज़ आए उसूल आए
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बिछड़ने वाले ने वक़्त-ए-रुख़्सत कुछ इस नज़र से पलट के देखा
कि जैसे वो भी ये कह रहा हो तुम अपने घर का ख़याल रखना
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इन उजड़ी बस्तियों का कोई तो निशाँ रहे
चूल्हे जलें कि घर ही जलें पर धुआँ रहे
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