फ़ारूक़ इंजीनियर के दोहे
आँखों को यूँ भा गया उस का रूप-अनूप
सर्दी में अच्छी लगे जैसे कच्ची धूप
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समय के धारे देख कर होता है विश्वास
एक न एक दिन देखना शेर चरेंगे घास
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किस को अब दिखलाएँ हम अपने दिल का ख़ून
सुनते आए हैं यही अंधा है क़ानून
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