aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
1940 | श्रीनगर, भारत
क़द्रों की हदें तोड़ नई तरह निकाल
दम तुझ में अगर है तो बाग़ी हो जा
काँच के अल्फ़ाज़ काग़ज़ पर न रख
संग-ए-मअ'नी बन के टकराऊँगा मैं
मैं हूँ 'मुज़्तर' बदन की नगरी में
मेरे हिस्से में ला-मकाँ लिखना
सुना है लोग वहाँ मुझ से ख़ार खाते हैं
फ़साना आम जहाँ मेरी बेबसी का है
हिसार-ए-ख़ौफ़-ओ-हिरास में है बुतान-ए-वहम-ओ-गुमाँ की बस्ती
मुझे ख़बर ही नहीं कि अब मैं जुनूब में या शुमाल में हूँ
Lafz Lafz Noha
1995
1984
Masnavi Mehjabeen
मेहजबीन
1996
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