फ़ातिमा हसन
ग़ज़ल 22
नज़्म 9
अशआर 26
क्या कहूँ उस से कि जो बात समझता ही नहीं
वो तो मिलने को मुलाक़ात समझता ही नहीं
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ख़्वाबों पर इख़्तियार न यादों पे ज़ोर है
कब ज़िंदगी गुज़ारी है अपने हिसाब में
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सुकून-ए-दिल के लिए इश्क़ तो बहाना था
वगरना थक के कहीं तो ठहर ही जाना था
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मैं ने माँ का लिबास जब पहना
मुझ को तितली ने अपने रंग दिए
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उलझ के रह गए चेहरे मिरी निगाहों में
कुछ इतनी तेज़ी से बदले थे उन की बात के रंग
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Eminent progressive writer, Poet Fatema Hassan, known for taking up sensitive issues related to feminism, reciting her poetry at Rekhta Studio. फ़ातिमा हसन
फ़ातिमा हसन
वीडियो का सेक्शन
शायर अपना कलाम पढ़ते हुए

Eminent progressive writer, Poet Fatema Hassan, known for taking up sensitive issues related to feminism, reciting her poetry at Rekhta Studio. फ़ातिमा हसन
