आँखों के ख़्वाब दिल की जवानी भी ले गया
वो अपने साथ मेरी कहानी भी ले गया
फ़ज़ा इब्ने फ़ैज़ी का अस्ल नाम फ़ैज़ुल हसन था लेकिन फ़ज़ा इब्ने फ़ैज़ी के नाम से मशहूर हुए। उनकी पैदाइश जुलाई 1923 में मऊनाथ भंजन (उ0प्र0) में हुई। दर्स-ए-ऩिज़ामिया से फ़ाज़िल की सनद हासिल की फिर इलाहाबाद बोर्ड की परीक्षाओं में शामिल हुए। उसके बाद फ़ज़ा शैक्षिक सिलसिला जारी न रख सके। सारी उम्र कई तरह की आर्थिक विपन्नताओं में घिरे रहे और शायरी करते रहे।
फ़ज़ा की शायरी अपने समकालिनो से बहुत अलग तरह की हैं, उनके यहाँ बहुत आसानी से किसी आन्दोलन या किसी विचारधारा की छाप तलाश नहीं की जा सकती। फ़ज़ा ने एक आज़ाद सृजनात्मक मानस के साथ शायरी की। उनके कलाम में एक परिपक्व क्लासीकी चेतना के साथ नये ज़माने की गहरी संवेदना का अंदाज़ा होता है। एक चिंतनशील काव्यात्मक वर्णन उनकी नज़्मों और ग़ज़लों में फैला हुआ है।
फ़ज़ा ने ज़्यादातर गज़लें कहीं लेकिन साथ ही नज़्म और रुबाई की विधा का भी उनके यहाँ विशेष महत्व है।
फ़ज़ा के कई काव्य संग्रह प्रकाशित हुए कुछ ये हैः ‘सफ़ीना-ए-ज़रग़ुल’(ग़ज़लें और रुबाइयाँ), ‘शोला नीमरोज़’(नज़्में), ‘दरीचा सीम सुमन’(ग़ज़लें), ‘सब्ज़-ए-मानी’, ‘बेगाना’(ग़ज़लें)