फ़ज़्ल अहमद करीम फ़ज़ली के शेर
है सख़्त मुश्किल में जान साक़ी पिलाए आख़िर किधर से पहले
सभी की आँखें ये कह रही हैं इधर से पहले इधर से पहले
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अहल-ए-हुनर के दिल में धड़कते हैं सब के दिल
सारे जहाँ का दर्द हमारे जिगर में है
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हमारे उन के तअल्लुक़ का अब ये आलम है
कि दोस्ती का है क्या ज़िक्र दुश्मनी भी नहीं
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आँखों का तो काम ही है रोना
ये गिर्या-ए-बे-सबब है प्यारे
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ग़म-ए-दौराँ में कहाँ बात ग़म-ए-जानाँ की
नज़्म है अपनी जगह ख़ूब मगर हाए ग़ज़ल
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नक़ाब उन ने रुख़ से उठाई तो लेकिन
हिजाबात कुछ दरमियाँ और भी हैं
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फ़रेब-ए-करम इक तो उन का है इस पर
सितम मेरी ख़ुश-फ़हमियाँ और भी हैं
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