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फ़िक्र तौंसवी

1918 - 1987 | दिल्ली, भारत

उर्दू साहित्य के महत्वपूर्ण हास्य-व्यंग्य लेखक

उर्दू साहित्य के महत्वपूर्ण हास्य-व्यंग्य लेखक

फ़िक्र तौंसवी

तंज़-ओ-मज़ाह 12

उद्धरण 43

अगर किसी मसअले पर दस आलिम-ओ-फ़ासिल हज़रात मुत्तफ़िक़ हो जाएँ, तो उस इत्तिफ़ाक़-ए-राय में ज़रूर कोई ग़लती होगी।

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ख़ुदा ने गुनाह को पहले पैदा नहीं किया। इंसान को पहले पैदा कर दिया। यह सोच कर कि अब ये ख़ुद-ब-ख़ुद गुनाह पैदा करेगा।

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उम्र औरत का एक बेश-क़ीमत ज़ेवर है, जिसे वह हमेशा एक डिबिया में बंद रखती है। कभी खोलती नहीं।

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जब आप घर में किसी को गंदी गाली निकालते हैं, तो आपका बच्चा उसे मातृ भाषा का हिस्सा समझ कर अपना लेता है।

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मर्द का दिल एक कमरा है, जिसमें सिर्फ़ एक औरत रह सकती है। लेकिन दिल के आस-पास बहुत से ऐसे कमरे भी होते हैं, जो कभी ख़ाली नहीं रहते।

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