फ़िज़ा कौसरी
ग़ज़ल 1
अशआर 1
तमाम जिस्म की परतें जुदा जुदा करके
जिए चले गए क़िस्तों में लोग मर मर के
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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere