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ग़ज़नफ़र

1953 | अलीगढ़, भारत

शायर, आलोचक और कथा लेखक, संवेदनशील सामाजिक विषयों पर उपन्यास और कहानी लेखन के लिए मशहूर

शायर, आलोचक और कथा लेखक, संवेदनशील सामाजिक विषयों पर उपन्यास और कहानी लेखन के लिए मशहूर

ग़ज़नफ़र

कहानी 21

रेखाचित्र 1

 

अशआर 13

हमारे हाथ से वो भी निकल गया आख़िर

कि जिस ख़याल में हम मुद्दतों से खोए थे

रफ़्ता रफ़्ता आँखों को हैरानी दे कर जाएगा

ख़्वाबों का ये शौक़ हमें वीरानी दे कर जाएगा

दफ़्तर में ज़ेहन घर पे निगह रास्ते में पाँव

जीने की काविशों में बदन हाथ से गया

हर एक रात कहीं दूर भाग जाता हूँ

हर एक सुब्ह कोई मुझ को खींच लाता है

बच के दुनिया से घर चले आए

घर से बचने मगर किधर जाएँ

ग़ज़ल 14

नज़्म 16

पुस्तकें 47

चित्र शायरी 1

 

वीडियो 8

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वीडियो का सेक्शन
शायर अपना कलाम पढ़ते हुए

ग़ज़नफ़र

कभी तो मूँद लें आँखे कभी नज़र खोलें

ग़ज़नफ़र

नए आदमी का कंफ़ेशन

कभी ये भी ख़्वाहिश परेशान करती है मुझ को ग़ज़नफ़र

महा-भारत

बिन-लादेन ग़ज़नफ़र

ये तमन्ना नहीं कि मर जाएँ

ग़ज़नफ़र

यक़ीन जानिए इस में कोई करामत है

ग़ज़नफ़र

सामान-ए-ऐश सारा हमें यूँ तू दे गया

ग़ज़नफ़र

हिजरत

वो आग़ोश जिस में पले ग़ज़नफ़र

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