अपना अपना ज़ौक़-ए-तलफ़ है अपनी अपनी फ़िक्र-ए-नज़र है
हर मंज़िल अंजाम-ए-सफ़र है हर मंज़िल आग़ाज़-ए-सफ़र है
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ज़हर निकला है तो अमृत भी कभी निकलेगा
बहर-ए-हस्ती को सलीक़े से खंगाला जाए
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पुस्तकें 2
Devta
1943
Devta
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