हरगोपाल तुफ्ता के शेर
'ग़ालिब' वो शख़्स था हमा-दाँ जिस के फ़ैज़ से
हम से हज़ार हेच-मदाँ नामवर हुए
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टैग : मिर्ज़ा ग़ालिब
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कुछ न सूझा उस बुत-ए-नाज़ुक-अदा को देख कर
रह गए सकते में हम शान-ए-ख़ुदा को देख कर
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