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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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हरगोपाल तुफ्ता

1799/1800 - 1879 | सिकंदराबाद, भारत

हरगोपाल तुफ्ता के शेर

'ग़ालिब' वो शख़्स था हमा-दाँ जिस के फ़ैज़ से

हम से हज़ार हेच-मदाँ नामवर हुए

कुछ सूझा उस बुत-ए-नाज़ुक-अदा को देख कर

रह गए सकते में हम शान-ए-ख़ुदा को देख कर

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