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हसन नईम

1927 - 1991 | पटना, भारत

शायरी में क्लासिकी शुऊर और जदीद इंक़िलाबी विचारों का ख़ूबसूरत संगम, नए समय की समस्याओं और उनकी रचनात्मक अभिव्यक्ति का प्रतिबिंब

शायरी में क्लासिकी शुऊर और जदीद इंक़िलाबी विचारों का ख़ूबसूरत संगम, नए समय की समस्याओं और उनकी रचनात्मक अभिव्यक्ति का प्रतिबिंब

हसन नईम के ऑडियो

ग़ज़ल

उम्मीद ओ यास ने क्या क्या न गुल खिलाए हैं

नोमान शौक़

कुछ उसूलों का नशा था कुछ मुक़द्दस ख़्वाब थे

नोमान शौक़

किसे बताऊँ कि वहशत का फ़ाएदा क्या है

नोमान शौक़

किसी हबीब ने लफ़्ज़ों का हार भेजा है

नोमान शौक़

ख़ैर से दिल को तिरी याद से कुछ काम तो है

नोमान शौक़

ख़्वाब की राह में आए न दर-ओ-बाम कभी

नोमान शौक़

ग़म से बिखरा न पाएमाल हुआ

नोमान शौक़

जंगलों की ये मुहिम है रख़्त-ए-जाँ कोई नहीं

नोमान शौक़

जब कभी मेरे क़दम सू-ए-चमन आए हैं

नोमान शौक़

जब्र-ए-शही का सिर्फ़ बग़ावत इलाज है

नोमान शौक़

पैकर-ए-नाज़ पे जब मौज-ए-हया चलती थी

नोमान शौक़

याद का फूल सर-ए-शाम खिला तो होगा

नोमान शौक़

रश्क अपनों को यही है हम ने जो चाहा मिला

नोमान शौक़

हुस्न के सेहर ओ करामात से जी डरता है

नोमान शौक़

नज़्म

एक दरख़्त एक तारीख़

नोमान शौक़

ख़ेमा-ए-याद

नोमान शौक़

निदा-ए-तख़्लीक़

नोमान शौक़

बे-इल्तिफ़ाती

नोमान शौक़

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