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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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हसीब सोज़

ग़ज़ल 14

अशआर 9

ये बद-नसीबी नहीं है तो और फिर क्या है

सफ़र अकेले किया हम-सफ़र के होते हुए

यहाँ मज़बूत से मज़बूत लोहा टूट जाता है

कई झूटे इकट्ठे हों तो सच्चा टूट जाता है

ये इंतिक़ाम है या एहतिजाज है क्या है

ये लोग धूप में क्यूँ हैं शजर के होते हुए

मेरी संजीदा तबीअत पे भी शक है सब को

बाज़ लोगों ने तो बीमार समझ रक्खा है

वो एक रात की गर्दिश में इतना हार गया

लिबास पहने रहा और बदन उतार गया

पुस्तकें 18

वीडियो 8

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शायर अपना कलाम पढ़ते हुए

हसीब सोज़

हसीब सोज़

ख़ुद को इतना जो हवा-दार समझ रक्खा है

हसीब सोज़

ख़ुद को इतना जो हवा-दार समझ रक्खा है

हसीब सोज़

दर्द आसानी से कब पहलू बदल कर निकला

हसीब सोज़

नज़र न आए हम अहल-ए-नज़र के होते हुए

हसीब सोज़

यहाँ मज़बूत से मज़बूत लोहा टूट जाता है

हसीब सोज़

हमारे ख़्वाब सब ताबीर से बाहर निकल आए

हसीब सोज़

"बदायूँ" के और लेखक

 

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