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मेडिकल डॉक्टर / लंदन में प्रवास

मेडिकल डॉक्टर / लंदन में प्रवास

हिलाल फ़रीद

ग़ज़ल 12

अशआर 14

मिरी दास्ताँ भी अजीब है वो क़दम क़दम मिरे साथ था

जिसे राज़-ए-दिल बता सका जिसे दाग़-ए-दिल दिखा सका

हम ख़ुद भी हुए नादिम जब हर्फ़-ए-दुआ निकला

समझे थे जिसे पत्थर वो शख़्स ख़ुदा निकला

आज हम से पूछिए कैसा कमाल हो गया

हिज्र के ख़ौफ़ में रहे और विसाल हो गया

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उस अजनबी से वास्ता ज़रूर था कोई

वो जब कभी मिला तो बस मिरा लगा मुझे

पानी पे बनते अक्स की मानिंद हूँ मगर

आँखों में कोई भर ले तो मिटता नहीं हूँ मैं

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