aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
1772 - 1838 | लखनऊ, भारत
लखनऊ के मुम्ताज़ और नई राह बनाने वाले शायर/मिर्ज़ा ग़ालिब के समकालीन
ज़िंदगी ज़िंदा-दिली का है नाम
मुर्दा-दिल ख़ाक जिया करते हैं
तेरी सूरत से किसी की नहीं मिलती सूरत
हम जहाँ में तिरी तस्वीर लिए फिरते हैं
वो नहीं भूलता जहाँ जाऊँ
हाए मैं क्या करूँ कहाँ जाऊँ
सियह-बख़्ती में कब कोई किसी का साथ देता है
कि तारीकी में साया भी जुदा रहता है इंसाँ से
आने में सदा देर लगाते ही रहे तुम
जाते रहे हम जान से आते ही रहे तुम
Aijaz-e-Nasikh
1988
Deewan-e-Nasikh
Part-002
1868
1846
Volume-002
1886
Volume-001-002
Nuskha-e-Banaras
1997
1893
अब की होली में रहा बे-कार रंग और ही लाया फ़िराक़-ए-यार रंग
आने में सदा देर लगाते ही रहे तुम जाते रहे हम जान से आते ही रहे तुम
ज़िंदगी ज़िंदा-दिली का है नाम मुर्दा-दिल ख़ाक जिया करते हैं
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