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इरफ़ान सत्तार

1968 | कनाडा

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इरफ़ान सत्तार

ग़ज़ल 59

अशआर 37

आबाद मुझ में तेरे सिवा और कौन है?

तुझ से बिछड़ रहा हूँ तुझे खो नहीं रहा

उस की ख़्वाहिश पे तुम को भरोसा भी है उस के होने होने का झगड़ा भी है

लुत्फ़ आया तुम्हें गुमरही ने कहा गुमरही के लिए एक ताज़ा ग़ज़ल

क्या बताऊँ कि जो हंगामा बपा है मुझ में

इन दिनों कोई बहुत सख़्त ख़फ़ा है मुझ में

यूँही रुका था दम लेने को, तुम ने क्या समझा?

हार नहीं मानी थी बस सुस्ताने बैठा था

राज़-ए-हक़ फ़ाश हुआ मुझ पे भी होते होते

ख़ुद तक ही गया 'इरफ़ान' भटकता हुआ मैं

पुस्तकें 2

 

चित्र शायरी 5

 

वीडियो 20

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हास्य वीडियो
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इरफ़ान सत्तार

ऑडियो 7

क्या बताऊँ कि जो हंगामा बपा है मुझ में

कोई मिला तो किसी और की कमी हुई है

ब-ज़ोम-ए-अक़्ल ये कैसा गुनाह मैं ने किया

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