जाफ़र शिराज़ी
ग़ज़ल 18
अशआर 1
मिरी तमन्ना है अब के तुम फिर मिलो तो जी भर के मुस्कुराएँ
कि देखना है ये रौशनी का सफ़र बहुत देर ब'अद जा कर
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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
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