aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
1866 - 1946 | हैदराबाद, भारत
सबसे लोकप्रिय उत्तर क्लासिकी शायरों में प्रमुख/अमीर मीनाई के शार्गिद/दाग़ देहलवी के बाद हैदराबाद के राज-कवि
बात उल्टी वो समझते हैं जो कुछ कहता हूँ
जब मैं चलूँ तो साया भी अपना न साथ दे
हम तुम मिले न थे तो जुदाई का था मलाल
होती कहाँ है दिल से जुदा दिल की आरज़ू
तुझ से सौ बार मिल चुके लेकिन
आप पहलू में जो बैठें तो सँभल कर बैठें
बात साक़ी की न टाली जाएगी
दिल कभी लाख ख़ुशामद पे भी राज़ी न हुआ
वो दिल ले के ख़ुश हैं मुझे ये ख़ुशी है
छुरी का तीर का तलवार का तो घाव भरा
आँख रहज़न नहीं तो फिर क्या है
ख़ुश हुआ ऐसा कि मैं आपे से बाहर हो गया
ज़िंदगी क्या जो बसर हो चैन से
क्या मिला तुम को मिरे इश्क़ का चर्चा कर के
मोहब्बत रंग दे जाती है जब दिल दिल से मिलता है
ये जो सर नीचे किए बैठे हैं
बिखरी हुई वो ज़ुल्फ़ इशारों में कह गई
रोज़ वो ख़्वाब में आते हैं गले मिलने को
या कभी आशिक़ी का खेल न खेल
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