जलील क़िदवई
ग़ज़ल 18
नज़्म 8
अशआर 2
लपका है ये इक उम्र का जाएगा न हरगिज़
इस गुल से तबीअत न भरेगी न भरी है
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पयाम्बर से ये कहला दिया कि बेहतर था
नियाज़-ओ-नाज़ की बातें थीं रू-ब-रू करते
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