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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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जुरअत क़लंदर बख़्श

1748 - 1809 | लखनऊ, भारत

अपनी शायरी में महबूब के साथ मामला-बंदी के मज़मून के लिए मशहूर, नौजवानी में नेत्रहीन हो गए

अपनी शायरी में महबूब के साथ मामला-बंदी के मज़मून के लिए मशहूर, नौजवानी में नेत्रहीन हो गए

जुरअत क़लंदर बख़्श की चित्र शायरी

दिल-ए-वहशी को ख़्वाहिश है तुम्हारे दर पे आने की

अब इश्क़ तमाशा मुझे दिखलाए है कुछ और

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