aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
1933
मैं तो क़ाबिल न था उन के दीदार के
उन की चौखट पे मेरी ख़ता ले गई
ज़िंदगी कुछ तो भरम रख ले वफ़ादारी का
तुझ को मर मर के शब-ओ-रोज़ सँवारा है बहुत
जो तोड़ दोगे मुझे तुम भी टूट जाओगे
कि इर्तिबात-ए-सलासिल की इक कड़ी हूँ मैं
हमें जो फ़िक्र की दावत न दे सके 'कौसर'
वो शेर शेर तो है रूह-ए-शाएरी तो नहीं
क्या दिल की प्यास थी कि बुझाई न जा सकी
बादल निचोड़ के न समुंदर तराश के
Aks-e-Takhyeel
1981
Junoon Ki Agahi
2012
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