ख़लील मामून के शेर
शायद अपना पता भी मिल जाए
झाँकता हूँ तिरी निगाहों में
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दर्द के सहारे कब तलक चलेंगे
साँस रुक रही है फ़ासला बड़ा है
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ऐसा हो ज़िंदगी में कोई ख़्वाब ही न हो
अँधियारी रात में कोई महताब ही न हो
ऐसे मर जाएँ कोई नक़्श न छोड़ें अपना
याद दिल में न हो अख़बार में तस्वीर न हो
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टैग : अख़बार
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जंगलों में कहीं खो जाना है
जानवर फिर मुझे हो जाना है
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जवाब ढूँड के सारे जहाँ से जब लौटे
हमें तो कर गया यक-लख़्त ला-जवाब कोई
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चलना लिखा है अपने मुक़द्दर में उम्र भर
मंज़िल हमारी दर्द की राहों में गुम हुई
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दिल में उमंग और इरादा कोई तो हो
बे-कैफ़ ज़िंदगी में तमाशा कोई तो हो
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मेरी तरह से ये भी सताया हुआ है क्या
क्यूँ इतने दाग़ दिखते हैं महताब में अभी
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टैग : चाँद
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मुझे तो इश्क़ है फूलों में सिर्फ़ ख़ुशबू से
बुला रही है किसी लाला की महक मुझ को
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मुझे पहुँचना है बस अपने-आप की हद तक
मैं अपनी ज़ात को मंज़िल बना के चलता हूँ
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हर एक काम है धोका हर एक काम है खेल
कि ज़िंदगी में तमाशा बहुत ज़रूरी है
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टैग : ज़िंदगी
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मसरूफ़-ए-ग़म हैं कौन-ओ-मकाँ जागते रहो
ख़्वाबों से उठ रहा है धुआँ जागते रहो
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सिर्फ़ चेहरा ही नज़र आता है आईने में
अक्स-ए-आईना नहीं दिखता है आईने में
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हर एक जगह भटकते फिरेंगे सारी उम्र
बिल-आख़िर अपने ही घर जाएँगे किसी दिन हम
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तेरी क्या ये हालत हो गई है 'मामून'
ख़ुद ही कह रहा है ख़ुद ही सुन रहा है
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लफ़्ज़ों का ख़ज़ाना भी कभी काम न आए
बैठे रहें लिखने को तिरा नाम न आए
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तुम हो खोए हुए ज़माने में
मैं ख़ुद अपनी ही ज़ात में गुम हूँ
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रफ़्तार-ए-रोज़-ओ-शब से कहाँ तक निभाऊँगा
थक-हार कर मैं घर की तरफ़ लौट जाऊँगा
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तुम नहीं आओगे ख़बर है हमें
फिर भी हम इंतिज़ार कर लेंगे
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वो बुराई सब से मेरी कर रहे हैं
क्यूँ नहीं करते बयाँ अच्छाइयों को
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जो नूर भरते थे ज़ुल्मात-ए-शब के सहरा में
वो चाँद तारे फ़लक से उतर गए शायद
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मैं मंज़िलों से बहुत दूर आ गया 'मामून'
सफ़र ने खो दिए सारे निशाँ तुम्हारी तरफ़
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हज़ारों चाँद सितारे चमक गए होते
कभी नज़र जो तिरी माइल-ए-करम होती
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सब लोग हमें एक नज़र आते हैं
अंदाज़ा नहीं होता है अब चेहरों का
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फ़तह के जश्न में हैं सब सरशार
मैं तो अपनी ही मात में गुम हूँ
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मिरा वजूद ओ अदम भी इक हादसा नया है
मैं दफ़्न हूँ कहीं कहीं से निकल रहा हूँ
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