ख़लील मामून
ग़ज़ल 24
नज़्म 7
अशआर 27
ऐसे मर जाएँ कोई नक़्श न छोड़ें अपना
याद दिल में न हो अख़बार में तस्वीर न हो
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ऐसा हो ज़िंदगी में कोई ख़्वाब ही न हो
अँधियारी रात में कोई महताब ही न हो
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जंगलों में कहीं खो जाना है
जानवर फिर मुझे हो जाना है
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जवाब ढूँड के सारे जहाँ से जब लौटे
हमें तो कर गया यक-लख़्त ला-जवाब कोई
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दर्द के सहारे कब तलक चलेंगे
साँस रुक रही है फ़ासला बड़ा है
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