खालिद इरफ़ान
ग़ज़ल 15
नज़्म 34
अशआर 12
जो तुम परफ़्यूम में डुबकी लगा कर रोज़ आती हो
फ़ज़ा तुम से मोअत्तर है हवा में कुछ नहीं रक्खा
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बिकती है अब किताब भी कैसेट के रेट पे
कैसे बनेगा 'ग़ालिब' ओ 'इक़बाल' का बजट
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बिछड़े थे जब ये लोग महीना था जून का
सोहनी बना रही थी महींवाल का बजट
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मैं ने बस इतना ही लिखा आई-लौ-यू और फिर
उस ने आगे कर दिया था गाल इंटरनेट पर
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क़ितआ 16
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